झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई – जन्मदिन विशेष

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झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई | Jhansi Ki Rani Lakshmi Bai

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Jhansi Ki Rani Lakshmi Bai Birthday 

About Rani Lakshmi Bai In Hindi | रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी

रानी लक्ष्मी बाई (Rani Laxmi Bai) 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख हस्तियों में से एक थीं और भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए ब्रिटिश राज के प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं। हर साल 19 नवंबर को राष्ट्र रानी लक्ष्मी बाई की जयंती मनाता है। इतिहास के अनुसार, रानी लक्ष्मी बाई का जन्म वाराणसी शहर में मणिकर्णिका तांबे के रूप में हुआ था।

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म | Rani Lakshmi Bai Birth

झांसी की रानी (रानी लक्ष्मी बाई) रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को काशी (बनारस) में महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण मोरोपंत तांबे के घर हुआ था। रानी झाँसी का बचपन का नाम मणिकर्णिका था। बचपन में ही उनकी मां उन्हें छोड़कर चली गईं और उनके पिता ने उन्हें मां के रूप में पाला और शिवा जी जैसे वीरों की कहानियां सुनाईं।लक्ष्मी को देखकर ऐसा लगा जैसे वह वीरता की प्रतिमूर्ति हो और जब वह बचपन में शिकार खेलती थी और नकली युद्ध का मैदान बनाती थी, तो मराठा भी उसकी तलवारों को देखकर खुश हो जाते थे। 14 साल की उम्र में उनका विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव से हो गया। शादी के बाद उनका नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई रखा गया। 

रानी लक्ष्मी बाई का जीवन | Life of Rani Lakshmi Bai Birth

लक्ष्मीबाई को एक पुत्र भी हुआ, तीन माह की आयु में उनका निधन हो गया इस बीच, राजा गंगाधर राव भी स्वर्ग चले गए और तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी को झांसी राज्य को हड़पने का अवसर मिला। रानी ने अपने पति के जीवनकाल में एक पुत्र को गोद लिया, जिसका नाम दामोदर राव रखा गया ब्रिटिश शासकों ने बच्चों को उत्तराधिकारी के रूप में गोद लेने पर रोक लगा दी थी जब रानी को पेंशन लेने और झांसी छोड़ने का आदेश दिया गया, तो रानी के मुंह से भारत की आत्मा बोल उठी। उसने कहा, मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी इसके बाद एक सैन्य क्रांति हुई, महारानी झांसी ने बहादुरी से युद्ध का नेतृत्व किया तांतिया टोपे, अजीमुल्लाह, अहमद शाह मौलवी, रघुनाथ सिंह, जवाहर सिंह, रामचंद्र ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और आजादी की इस जंग में रानी के वीर साथियों को अंग्रेज़ों ने शहीद कर दिया।

रानी लक्ष्मी बाई का अंग्रेज़ों से युद्ध | Rani Lakshmi Bai’s war with British

लक्ष्मी बाई की सबसे बड़ी ताकत उनकी सहेलियां थीं जो न केवल अच्छी सैनिक बल्कि सेना की कमांडर भी बनीं। शादी के बाद लक्ष्मी बाई  ने अपनी सभी सहेलियों को युद्ध के गुण सिखाये।  हम गौस खान और खुदा बख्श जैसे तोपचीयों के नाम नहीं भूल सकते, जिन्होंने अपनी आखिरी सांस तक वीर रानी का आजादी के युद्ध में साथ दिया। यदि देशद्रोही दुल्ला जू ने अंग्रेजों को रास्ता नहीं बताया होता तो अंग्रेज कभी झांसी के किले पर कब्जा नहीं कर सकते थे। रानी ने 12 दिनों तक झांसी के किले से मुट्ठी भर सैनिकों के साथ अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी, लेकिन देश का दुर्भाग्य यह रहा कि ग्वालियर और टीकमगढ़ के राजाओं ने ब्रिटिश सेना की मदद की।

रानी लक्ष्मी बाई से विश्वासघात | Betrayal With Rani Laxmi Bai

रानी के अपने सैन्य अधिकारियों में से एक, दुल्ला जू, जो लालच में अंग्रेजों के साथ हो गया, अन्यथा झांसी कभी अंग्रेजों के हाथों में नहीं पड़ता। इस लड़ाई में महारानी ने अंग्रेज़ो से जमकर लड़ाई की लेफ़्टिनेंट वाकर भी लक्ष्मी बाई से घायल होकर भागा , अंत में रानी को झांसी का किला छोड़ना पड़ा। अंग्रेजों की शक्तिशाली सेना भी रानी का घेरा नहीं तोड़ सकी। जनरल स्मिथ तोपखाने और पीछे से सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ रानी का पीछा कर रहे थे इस संघर्ष में रानी के सैनिक मित्र मुंदर भी शहीद हो गई रानी अपना घोड़ा दौड़ा रही थी, तभी अचानक एक नहर उसके सामने आ गई घोड़ा उसमें गिर गया ब्रिटिश सैनिकों ने रानी को घेर लिया उन्होंने रानी को सिर के पीछे और दूसरी बार उनकी छाती पर मारा, वार से चेहरा कट गया और एक आँख बुरी तरह से घायल हो गई। ऐसी स्थिति में भी लक्ष्मी ने कई अंग्रेज घुड़सवारों को परलोक में भेजा, लेकिन वह खुद इस चोट से घोड़े से गिर गईं।

रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु | Death of Rani Lakshmi Bai

रानी लक्ष्मीबाई के साथ यह हादसा नए घोड़े की वजह से हुआ, नहीं तो रानी दूर चली जाती अंतिम क्षणों में भी रानी लक्ष्मीबाई ने रघुनाथ सिंह से कहा कि गोरों को मेरे शरीर को फिरंगी छू न सकें, रानी के भरोसेमंद अंगरक्षकों ने दुश्मन को भ्रमित किया और शेष सैनिक रानी के शरीर को बाबा गंगा दास की कुटिया में ले गए, जहाँ रानी ने अपने प्राण त्याग दिए। बाबा ने रानी की चिता को अपनी झोंपड़ी में बनाया और उसे अग्नि दी। रघुनाथ सिंह ने शत्रु को भगाने के लिए रात भर बन्दूक चलाई और अंत में वीरगति को प्राप्त हुए, जिसके साथ काशीबाई भी शहीद हो गईं। यह दिन था 18 जून 1858 रानी लक्ष्मीबाई ने शत्रुओं का विरोध किया और शहादत को गले लगाया।

झाँसी की रानी | Jhansi Ki Rani 

वीरता की अग्र श्रेणी में एक नाम है रानी लक्ष्मीबाई । यह वह नाम है जिसने नारी के प्रति स्थापित कल्पना को बदल कर रख दिया। अबला के स्थान पर सबला, कोमलांगी के स्थान पर और रमणी के स्थान पर रणचण्डी के रूप में मान्यता दिलाई। पति गंगाधर राव के देहान्त के बाद उसने सत्ता संभाली और अंग्रेजों को करारी टक्कर दी। झांसी पर अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद ग्वालियर कूच कर गयी। ग्वालियर में दो दिन के घमासान युद्ध के बाद कुछ सैनिकों के साथ बाहर निकल गयीं किन्तु घोड़ा जवाब दे गया। अंग्रेजों की गोली लगने के कारण गिर पड़ीं और उनका प्राणान्त हो गया। उनके क सैनिक उनके शव को वहाँ से ले गए और झटपट उनका दाह संस्कार कर दिया ताकि अंग्रेजों की छाया भी उन पर न पड़ सके।

उम्मीद है आपको रानी लक्ष्मी बाई के बारे में हिंदी में ( About Rani Lakshmi Bai In Hindi) में पढ़कर अच्छा लगा होगा। अपने घर, दोस्तों और बच्चों के साथ रानी झाँसी के जीवन पर चर्चा ज़रूर करें। 

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