RSS Bodh Katha : आरएसएस नैतिक हिंदी कहानियाँ एवं बोध कथाएँ
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आज हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बोध कथाएं पढ़ेंगे
RSS Bodh Katha – शिक्षित कौन ?
आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi #1
अनेक लोग स्वयं को शिक्षित और प्रगतिशील दिखाने के चक्कर में अपने हिन्दू प्रतीकों और नामों की उपेक्षा करते दिखते हैं। इसे स्पष्ट करने के लिए श्री गुरुजी ने एक बार यह कथा सुनायी।
गाँव में रहने वाले एक निर्धन सज्जन ने अनेक कष्ट उठाकर भी अपने बच्चों को पढ़ाया। सौभाग्य से उनका एकमात्र पुत्र पढ़-लिखकर उच्च अधिकारी
बन गया और एक बड़े शहर में उसकी नियुक्ति भी हो गयी। उचित समय पर उन्होंने पुत्र का विवाह किया। विवाह के बाद वह युवक पत्नी सहित शहर में ही रहने लगा।
दो साल इसी प्रकार बीत गये, एक दिन उन्हें समाचार मिला कि उनके बेटे के घर में पुत्र का जन्म हुआ है। वे बहुत प्रसन्न हुए तथा अपने पौत्र को देखने की इच्छा से शहर की ओर चल दिये। जिस समय वे अपने बेटे की कोठी पर पहुंचे, वह अपने मित्रों के साथ बैठा चाय पी रहा था। जब उसने अपने पिता को आते हुए देखा, तो वह घबरा गया।
उसने सोचा कि मेरे ये मित्र क्या सोचेंगे कि ऐसा गँवार और निर्धन व्यक्ति उसका पिता है। उसने एक नौकर को भेजा, जिससे वह पिताजी को पिछले दरवाजे से अंदर ले आये। जब एक मित्र ने आंगतुक के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि ये हमारा पुराना घरेलू नौकर है और गाँव से आ रहा है। उसके पिता ने यह सुन लिया। वे सबके सामने गुस्से में बोले : मैं कौन हूँ, यह इसकी माँ से पूछ लो। इतना कहकर वे अपना सामान उठाकर बिना पौत्र को देखे वापस चले गये।
इस घटना का संदेश है कि अच्छी शिक्षा वही है, जो संस्कारों को जीवित और जाग्रत रखे। ऐसी उच्च शिक्षा का क्या लाभ, जिससे व्यक्ति अपने धर्म, संस्कृति और परिवार से ही कट जाये।
RSS Bodh Katha – शक्ति का रहस्य
आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi #2
सीधे-सादे लोगों की अज्ञानता का लाभ उठाकर कुछ धूर्त लोग प्रायः अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। एक मौलवी साहब किसी मजार पर बैठते थे। उन्होंने लोगों से पैसे ऐंठने का एक तरीका खोज निकाला था। मजार के सामने एक बड़ा पत्थर पड़ा था। भारी होने के कारण लोग उसे हिला नहीं पाते थे। जब आठ-दस लोग एकत्र हो जाते, तो मौलवी साहब उन्हें कहते कि वे मिलकर उस पत्थर को हिलाएँ। लोग प्रयास करते; पर वह पत्थर हिलता ही नहीं था।
इस पर वह मौलवी सबसे कहता कि अब वे सब मजार की ओर मुँह करके पत्थर को हिलाने का प्रयास करें। मौलवी साहब जोर से ‘पीर साहब की फतह’ का नारा लगाकर सबको इशारा करते। अब सबके जोर लगाने पर वह पत्थर हिल जाता। सब लोग समझते कि यह पीर साहब का ही चमत्कार है।
एक बार कुछ स्वयंसेवक उस स्थान से आये थे, उन्होंने श्री गुरुजी को उस पत्थर और पीर के चमत्कार के बारे में बताया। गुरुजी उन सबको लेकर बाहर आये। वहाँ मजार के सामने वाले पत्थर से भी बड़ा एक पत्थर रखा था। गुरुजी ने सबको एक दिशा में खड़ा किया। फिर सबने उच्च स्वर में ‘बजरंग बली की जय’ का नारा लगाकर जोर लगाया, तो वह पत्थर भी हिल गया।
अब श्री गुरुजी ने सबको समझाया कि पत्थर हिलने से पीर साहब का कोई संबंध नहीं है। जब सब मिलकर एक दिशा में ताकत लगाते हैं, तो पत्थर हिलेगा ही। अर्थात शक्ति पीर साहब में नहीं सामूहिक प्रयास में है।
इसी प्रकार हम किसी कठिन कार्य को मिलकर करें, तो वह भी सरल हो जायेगा।
RSS Bodh Katha – मनोबल का महत्त्व
आरएसएस बोध कथा | RSS Bodh Katha in Hindi #3
कई लोग शरीर से तो बहुत बलशाली होते हैं; पर मनोबल न होने के कारण वे प्रायः कुछ कर नहीं पाते। श्री गुरुजी काशी में पढ़ते समय एक महीने के विशेष अध्ययन के लिए प्रयाग गये थे। इस बारे में उस समय का एक अनुभव वे सुनाते थे।
प्रयाग विश्वविद्यालय में उस समय एक पहलवान छात्र भी पढ़ रहा था। उसने कुश्ती में अनेक पदक पाये थे। वहीं एक दुबला-पतला, पर बहुत चुस्त फुर्तीला बंगाली युवक भी था। वह प्रायः शांत भाव से अपने अध्ययन में लगा रहता था।
एक बार उन दोनों में किसी बात पर झगड़ा हो गया। अपने स्वभाव के अनुरूप पहले तो वह बंगाली युवक शांत ही रहा; पर जब बात बहुत आगे बढ़
गयी, तो उससे नहीं रहा गया। उसने पहलवान के मुँह पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। केवल इतने पर ही वह नहीं रुका। उसने पहलवान पर घूसों की बरसात भी कर दी।
पहलवान युवक भौचक रह गया। उसके पास शरीर-बल तो था; पर मनोबल नहीं । बंगाली युवक ने उसे धक्का देकर नीचे गिरा दिया और उसके सीने पर चढ़ बैठा। पहलवान के पाँव उखड़ गये, उसने जैसे-तैसे स्वयं को छुड़ाया और मैदान छोड़कर भाग गया।
स्पष्ट है कि शरीर-बल के साथ मनोबल होना भी बहुत आवश्यक है। बिना मनोबल के शरीर-बल का कोई महत्त्व नहीं है।
संघ का पूरा नाम क्या है ? संस्थापक कौन है ? संघ की स्थापना कहाँ और कब हुई ?
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